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{{KKRachna
|रचनाकार=हिमांशु पाण्डेय
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हर शख्स अपने साथ मैं खुशहाल कर सकूं
मेरी समझ नहीं कि ये कमाल कर सकूं ।

फैली हैं अब समाज में अनगिन बुराइयाँ
है लालसा कि बद को मैं बेहाल कर सकूँ।

फेकूँ निकाल हिय के अन्धकार द्वेष को
कटुता के जी का आज मैं जंजाल कर सकूँ।

है प्रार्थना कि नाथ वृहद शक्ति दो हमें
चेहरा बुराइयों का मैं विकराल कर सकूँ ।
</poem>
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