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|संग्रह= रश्मिरथी / रामधारी सिंह "दिनकर"
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जाति-गोत्र के बल से ही आदर पाते हैं जहाँ सुजान?
 
चुनना जाति और कुल अपने बस की तो है बात नहीं।
 
 
नीचे हैं क्यारियाँ बनीं, तो बीज कहाँ जा सकता है?
 
जाति बड़ी, तो बड़े बनें, वे, रहें लाख चाहे खोटे।'
 
 
और बनाकर छिद्र मांस में मन्द-मन्द भीतर जाने।
 
 
बिना उठाये पाँव शत्रु को कर्ण नहीं पा सकता था।
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