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|रचनाकार=प्रेम नारायण ’पंकिल’ 'पंकिल'
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स्वाद सुधा में है पदार्थ में स्वाद न पायेगा मधुकर
सुख तो सब उसे सच्चे प्रिय में कहाँ खोजता रस निर्झर
कण कण में झंकृत है उसकी स्वर लहरी उल्लासमयी
टेर रहा है योनिरुत्तमा मुरली तेरा मुरलीधर।।120।।
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