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|रचनाकार=प्रेम नारायण ’पंकिल’'पंकिल'
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चिर विछोह की अंतहीन तिमिरावृत रजनी में मधुकर,
फिरा बहुत बावरे अभीं भी अंतर्मंथन कर निर्झर