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दिल के इक जज़्वए-मासूम ने देखे थे जो ख़्वाब
और ताबीरों के तपते हुए सहराओं में
यह तो मुमकिन नहीं बचपन का कोई दिन मिल जाए
या पलट आये कोई साअते-नायाबे-शबाब५शबाब<ref>अप्राप्य जवानी का कोई क्षण</ref>फूट निकले किसी अफ़सुर्दा तबस्सुम६ तबस्सुम<ref>बुझी हुई मुस्कराहट</ref> से किरनया दमक उट्ठे किसी दस्ते-बुरीदा७ बुरीदा<ref>कटे हाथ में</ref> में गुलाब
आह पत्थर की लकीरें हैं कि यादों के नुक़ूश
कौन लिख सकता है फिर उम्रे-गुज़श्ता की किताब
बीते लमहात के सोये हुए तूफ़ानों में
तैरते फिरते हैं फूटी हुई आँखों के हबाब८हबाब<ref>बुलबुले</ref>ताबिशे-रंगे-शफ़क़९शफ़क़<ref>उषा की लालिमा की चमक</ref>, आतिशे-रूए-ख़ुर्शीद१०ख़ुर्शीद<ref>सूर्य के मुख की आग</ref>
मल के चेहरे पे सहर आयी है ख़ूने-अहबाब
जाने किस मोड़ पे किस राह में क्या बिती है
फेंक फिर जज़्बए-बेताब की आ़लम पे कमन्द
एक ख़्वाब और भी ऐ हिम्मते-दुश्वारपसन्द