भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कविता वाचक्नवी }} <poem> '''छाँह में झुलसे जले''' एक साय...
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कविता वाचक्नवी
}}
<poem>
'''छाँह में झुलसे जले'''


एक साया
तमतमाया
बोलता
लो तप जरा
और हम
पेड़ों तले भी
छाँह में
झुलसे जले -
:::साथ सोए स्वप्न को
:::पल-पल झिंझोड़ा
:::देखा
:::उनींदी आँख से,
:::::औ’ सकपकाए।

बाँह धर कर
:::स्वप्न ने
:::कुछ पास खींचा,
:::आँख का
:::अंजन नहीं हूँ
:::::स्वप्न हूँ
:::::मत आँख खोलो।

कल्पदर्शी चक्षु का
अविराम नर्तन
:::तरलता के बीच
:::पल-पल
:::थिरकता है
:::और छाया को
:::तपन के
:::ताड़नों से
:::हेरता है।
</poem>