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छीनकर छ्लछंद से <br />हक पराया मारकर<br />अम्रित पिया तो क्या पिया ?<br />हो गये बेशक अमर<br />जी रहे अम्रित उमर<br />लेकिन अभय अनमोल <br />सारा छिन गया ।<br />देवता तो हो गये पर<br />क्या हुआ देवत्व का ?<br />आयुभर चिन्ता करो अब <br />पद प्रतिष्टा,राजसत्ता<br />और अपने लोक की !<br />छिन नहीं जाए सुधा सिंहासनों की<br />एक हि भय <br />रात दिन आठों प्रहर<br />प्राण में बैठा रहे--<br />इस भयातुर अमर <br />जीवन का करो क्या ?<br />
जो किसि षड्यंत्र मे
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