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बड़े बड़े पिरवार परिवार मिटें यों, एक न हो रोनेवाला,<br>
हो जाएँ सुनसान महल वे, जहाँ थिरकतीं सुरबाला,<br>
राज्य उलट जाएँ, भूपों की भाग्य सुलक्ष्मी सो जाए,<br>
फैले हों जो सागर तट से विश्व बने यह मधुशाला।।३१।<br><br>
अधरों पर हो कोई भी रस जिहवा जिह्वा पर लगती हाला,<br>
भाजन हो कोई हाथों में लगता रक्खा है प्याला,<br>
हर सूरत साकी की सूरत में परिवर्तित हो जाती,<br>