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{{KKRachna
|रचनाकार=कविता वाचक्नवी
}}
<poem>
'''उसी दिन से'''

जिस दिन
धुनिये ने
सेमल की रूई तक को
धुन डाला
हवा उसी दिन से
चिपकी जाती है
मेरे होठों पर।
</poem>