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|रचनाकार=शाद अज़ीमाबादी
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सरापासोज़<ref>पूर्ण रूपेण जलना</ref> है ऐ दिल! सरापा नूर हो जाना।
अगर जलना तो जलकर, जलवागाहे-तूर हो जाना॥
हमारे ज़ख्मे-दिल ने दिल्लगी अच्छी निकाली है।
छुपाये से तो छुप जाना मगर नासूर हो जाना

ख़याले-वस्ल को अब आरज़ू झूला झुलाती है।
क़रीब आना दिले-मायूस के, फिर दूर हो जाना॥

शबे-वस्ल अपनी आँखों ने अजब अन्धेर देखा है।
नक़ाब उनका उलटना रात का काफ़ूर हो जाना॥
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