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Kavita Kosh से
समता तुम्हारे रूप की त्रैलोक्य में रखी कहाँ?<br>
पर प्राप्ति भी उनकी वहाँ भाती नहीं होगी तुम्हें?<br>
क्या याद हम सबकी वहाँ आती नहीं होगी तुम्हें?<br><br>
यह भुवन ही इन्द्र कानन कर्म वीरों के लिए,<br>
है क्या तुम्हारे योग्य, यह तो भूमि-सेज कठोर है!<br>
रख शीश मेरे अंक में जो लेटते थे प्रीति से,<br>
यह लेटना अति भिन्न है उस लेटने की रीति से ||<br><br>
कितनी विनय मैं कर रही हूँ क्लेश से रोते हुए,<br>