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|संग्रह=चाहते तो... / रमेश कौशिक
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घाटियों की बाल्टी में
नभ से उतर कर आयेगी
:::शिखर के कंगूरों
:::::तरुवरों
:::घर की छतों पर
::::कड़े सुखाएगी
</poem>