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|रचनाकार=अली अख़्तर ‘अख़्तर’'अख़्तर'
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कोई और तर्ज़े-सितम सोचिये।
दिल अब ख़ूगरे-इम्तहाँ<ref>परीक्षा का अभ्यस्त</ref> हो गया॥
तुझ से हयातो-मौत का मसअला हल अगर न हो।
ज़हरे-ग़मे-हयात पी मौत का इन्तज़ार कर॥
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