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नया पृष्ठ: <poem> अब अजब अहसास की परवाज़ में हैं पर लगे घर लगे होटल नुमाँ अर्धांग...
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अब अजब अहसास की परवाज़ में हैं पर लगे
घर लगे होटल नुमाँ अर्धांगिनी वेटर लगे
अब भुलावा नींद को देते हैं टीवी सीरियल
और दादी की कथा तो बेतुकी टरटर लगे
बाग कमरे में बने जो प्लास्टिक के फूल हों
फिक्र भंवरों का कहाँ क्या तितलियों का डर लगे।
चारागर की बेकसी से अब है डर लगने लगा
रोगियों के साथ ही उसका कहीं बिस्तर लगे
जब कभी लैला का आँचल सुर्ख परचम हो गया
जागरण के नाम पर मजनूं को है पत्थर लगे
राह बतियाती नहीं संवाद भी संभव नहीं
रहनुमाई में तुम्हारी भी सफर बदतर लगे
अब से घर चूने लगे तो कर यकीं बरसात में
रतजगे करना ही सारे गाँव को बेहतर लगे
विश्व में अलगाव की दीवार गर ये ढह सके
तो धरा महबूब सी और प्रेम सा अम्बर लगे
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अब अजब अहसास की परवाज़ में हैं पर लगे
घर लगे होटल नुमाँ अर्धांगिनी वेटर लगे
अब भुलावा नींद को देते हैं टीवी सीरियल
और दादी की कथा तो बेतुकी टरटर लगे
बाग कमरे में बने जो प्लास्टिक के फूल हों
फिक्र भंवरों का कहाँ क्या तितलियों का डर लगे।
चारागर की बेकसी से अब है डर लगने लगा
रोगियों के साथ ही उसका कहीं बिस्तर लगे
जब कभी लैला का आँचल सुर्ख परचम हो गया
जागरण के नाम पर मजनूं को है पत्थर लगे
राह बतियाती नहीं संवाद भी संभव नहीं
रहनुमाई में तुम्हारी भी सफर बदतर लगे
अब से घर चूने लगे तो कर यकीं बरसात में
रतजगे करना ही सारे गाँव को बेहतर लगे
विश्व में अलगाव की दीवार गर ये ढह सके
तो धरा महबूब सी और प्रेम सा अम्बर लगे
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