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वैद है ढोंगी रोग झूठा
कम असलीयत ज़्यादा नख़रा

क्या पहचाने बाप को बेटा
आँखों में जब इतना कचरा

फिलटर सिगरेट पीता बेटा
बीड़ी को तरसे है बूढ़ा

जीभ लगी बकने तब सब कुछ
वो इतना आँखों को अखरा

फैली दूरे जो वन में भड़की
क्या थी सोच अलग है टपरा

कौन फंसेगा इस झंझट में
किसका बाप मरा है ताज़ा

उसको सारा भेद मिला है
प्रेम अचानक जब आ टकरा
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