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|रचनाकार=सीमाब अकबराबादी
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खु़दा और नाख़ुदा मिलकर डुबो दें यह तो मुमकिन है।
मेरी वजहे-तबाही सिर्फ़ तूफ़ाँ हो नहीं सकता॥

दुआ जाइज़, ख़ुदा बरहक़, मगर माँगूँ तो क्या माँगूँ।
समझता हूँ कि मैं, दुनिया बदामाँ हो नहीं सकता॥


</poem>