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Kavita Kosh से
तेरी आँखें तेरी ठहरी हुई ग़मगीन-सी आँखें<BR>
तेरी आँखें आँखों से ही तख़लीक़ हुई है सच्ची <BR>तेरी आँखों से ही तख़लीक़ हुई है हे ये हयात<BR><BR>
तेरी आँखों से ही खुलते हैं, सवेरों के उफूक़<BR>