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ओ चिर नीरव / महादेवी वर्मा

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{{KKRachna
|रचनाकार=महादेवी वर्मा
|संग्रह=दीपशिखा / महादेवी वर्मा
}}
<poem>
पंथ होने दो अपरिचित प्राण रहने दो अकेला!
घेर ले छाया अमा बन,
आज कज्जल-अश्रुओं में रिमझिमा ले यह घिरा घन,
और होंगे नयन सूखे,
तिल बुझे औ’ पलक रूखे,
आर्द्र चितवन में यहाँ
शत विद्युतों में दीप खेला
'''काव्य संग्रह [[दीपशिखा / महादेवी वर्मा|दीपशिखा]] अन्य होंगे चरण हारे,और हैं जो लौटते, दे शूल को संकल्प सारे,दुखव्रती निर्माण उन्मद,यह अमरता नापते पद,बाँध देंगे अंक-संसृतिसे'''<br><br>तिमिर में स्वर्ण बेला!
पंथ होने दो अपरिचित प्राण रहने दो अकेला!<br>दूसरी होगी कहानी,घेर ले छाया अमा बनशून्य में जिसके मिटे स्वर, धूलि में खोई निशानी,<br>आज कज्जल-अश्रुओं में रिमझिमा ले यह घिरा घनजिस पर प्रलय विस्मित,<br>और होंगे नयन सूखेमैं लगाती चल रही नित,<br>तिल बुझे मोतियों की हाट औ’ पलक रूखे,<br>आर्द्र चितवन में यहाँ<br>शत विद्युतों में दीप खेला!<br><br>चिनगारियों का एक मेला
अन्य होंगे चरण हारेहास का मधु-दूत भेजो,<br>और हैं जो लौटते, दे शूल रोष ती भ्रू-भंगिमा पतझार को संकल्प सारे,<br>चाहे सहेजोदुखव्रती निर्माण उन्मदले मिलेगा उर अचंचल,<br>यह अमरता नापते पदवेदना-जल,<br>बाँध देंगे अंकस्वप्न-संसृति<br>शतदल,जान लो वह मिलन एकाकीसे तिमिर विरह में स्वर्ण बेला!<br><br>है दुकेला
दूसरी होगी कहानी,<br>शून्य में जिसके मिटे स्वर, धूलि में खोई निशानी,<br>आज जिस पर प्रलय विस्मित,<br>मैं लगाती चल रही नित,<br>मोतियों की हाट औ’<br>चिनगारियों का एक मेला!<br><br> हास का मधु-दूत भेजो,<br>रोष ती भ्रू-भंगिमा पतझार को चाहे सहेजो!<br>ले मिलेगा उर अचंचल,<br>वेदना-जल, स्वप्न-शतदल,<br>जान लो वह मिलन एकाकी<br>विरह में है दुकेला!<br><br> पंथ होने दो अपरिचित प्राण रहने दो अकेला!<br><br/poem>
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