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{{KKRachna
|रचनाकार=महादेवी वर्मा
|संग्रह=दीपशिखा / महादेवी वर्मा
}}
<poem>
हुए शूल अक्षत मुझे धूलि चन्दन!
अगरु धूम-सी साँस सुधि-गन्ध-सुरभित,
बनी स्नेह-लौ आरती चिर-अकम्पित,
हुआ नयन का नीर अभिषेक-जल-कण!
सुनहले सजीले रँगीले धबीले,
हसित कंटकित अश्रु-मकरन्द-गीले,
बिखरते रहे स्वप्न के फूल अनगिन!
असित-श्वेत गन्धर्व जो सृष्टि लय के,
दृगों को पुरातन, अपरिचित ह्रदय के,
सजग यह पुजारी मिले रात औ’ दिन!