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Kavita Kosh से
अटका कहीं जो आप का दिल भी मेरी तरह
मर चुक कहीं कि तू ग़मे-हिज़्राँ <ref>विरह के दु:ख</ref> से छूट जाये
कहते तो हैं भले की वो लेकिन बुरी तरह
ना ताब <ref>संतुष्टि</ref> हिज्र <ref>विरह</ref> में है ना आराम <ref>वस्ल</ref> वस्ल में,
कमबख़्त दिल को चैन नही है किसी तरह
ना जाए वाँ <ref>वहाँ</ref> बने है ना बिन जाए चैन है,
क्या कीजिए हमें तो है मुश्किल सभी तरह
लगती है गालियाँ भी तेरी मुझे तेरे मुँह से क्या भली,कुर्बान क़ुर्बान तेरे, फिर मुझे कह ले इसी तरह
पामाल <ref>तबाह</ref> हम न होते फ़क़त जौरे-चर्ख़ <ref>भाग्य के अत्याचार</ref> से
आयी हमारी जान पे आफ़त कई तरह
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