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{{KKRachna
|रचनाकार=इंशा अल्लाह खां
}}
[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>
यह जो महंत बैठे हैं राधा के कुण्ड पर
अवतार बन कर गिरते हैं परियों के झुण्ड पर

शिव के गले से पार्वती जी लिपट गयीं
क्या ही बहार आज है ब्रह्मा के रुण्ड पर

राजीजी एक जोगी के चेले पे ग़श हैं आप
आशिक़ हुए हैं वाह अजब लुण्ड मुण्ड पर

'इंशा' ने सुन के क़िस्सा-ए-फरहाद यूँ कहा
करता है इश्क़ चोट तो ऐसे ही मुण्ड पर
</poem>