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{{KKRachna
|रचनाकार=केशव
|संग्रह=अलगाव / केशव
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>मुझे साथ-साथ लिये चलो
मैं तुम्हें आईना दूँगा
जिसमें मृत्यु को देख
तुम क्षण-क्षण में जी सकोगे
तब तुम्हें नहीं ढूँढने पड़ेंगे हल
समस्याओं में तुम
खड़े नहीं रहोगे
देखकर
जीकर
बह जाओगे
जैसे सुरंग में से गुज़रता दरिया
ज़िन्दगी के समुद्र में
मुझे साथ-साथ लिये चलो
सच,मैं तुम्हें गति दूँगा
जो ल्ए जायेगी तुम्हें
सभी पुलों के पार
आकाश ओढ़े सोई तुम्हारी
परछाईं के पास
</poem>
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|संग्रह=अलगाव / केशव
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<poem>मुझे साथ-साथ लिये चलो
मैं तुम्हें आईना दूँगा
जिसमें मृत्यु को देख
तुम क्षण-क्षण में जी सकोगे
तब तुम्हें नहीं ढूँढने पड़ेंगे हल
समस्याओं में तुम
खड़े नहीं रहोगे
देखकर
जीकर
बह जाओगे
जैसे सुरंग में से गुज़रता दरिया
ज़िन्दगी के समुद्र में
मुझे साथ-साथ लिये चलो
सच,मैं तुम्हें गति दूँगा
जो ल्ए जायेगी तुम्हें
सभी पुलों के पार
आकाश ओढ़े सोई तुम्हारी
परछाईं के पास
</poem>