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नई डायरी / सुदर्शन वशिष्ठ

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|संग्रह=सिंदूरी साँझ और ख़ामोश आदमी / सुदर्शन वशिष्ठ
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<poem>
सब के लिए बनाई गई डायरियाँ
कि बन्धा रहे जीवन
हाँ,लिखा कुछ नहीं
पता नहीं किस का दिमाग चला
किसने रची साजिश।

उथाता हूँ नई डायरी
कोरे पन्ने
क्या होगा, क्या नहीं
पता नहीं
बार बार उठती सीने में दर्द
कभी डूबता मन
कभी अन्यंत प्रसन्न
उत्साह भरा।
कहाँ से चला, कहाँ ठहरा, कहाँ साँझ हुई
क्या हुआ जो था प्रसन्न अप्रत्याशित
कई बार हुआ सम्भव जो था असम्भव
कई बार सम्भव भी
बना असम्भव।

क्या होगा पता नहीं
भूतकाल बताते सभी
भविष्य का होगा
बता नहीं सका कोई नामी नजूमी
जानो भी मत
जीओगे डर डर कर।

तभी शायद कहा है जीवन एक ऐडवैंचर
नहीं जानते हम अपना भविष्य
क्या पार कर पाएँगे बाधा
जीत पाएँगे तमाम दुर्ग
या होगी करारी हार
पता नहीं ।

उठाता हूँ नई डायरी
कोरे पन्ने
तारीखें तो हैं
घटनाओं की जगह खाली
क्या होगा, क्या नहीं पता नहीं
यह तय है
एक तुम ही हो तो लिखोगे नई इबारत ।</poem>
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