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|रचनाकार=सफ़ी लखनवी
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<poem>


ख़ामोश रहने दो ग़मज़दों को, कुरेद कर हाले-दिल न पूछो।
तुम्हारी ही सब इनायतें हैं, मगर तुम्हें कुछ खबर नहीं है।

उन्हीं की चौखट सही, यह माना, रवा नहीं बेबुलाए जाना।
फ़क़ीर उज़लतगुज़ीं<ref>एकांतवासी</ref> ‘सफ़ी’ है, गदाये-दरवाज़ागर<ref>दर का भिखारी</ref> नहीं है॥
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