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|रचनाकार=वीरेंद्र मिश्र
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यह मधुर मधुवंत बेला
 
मन नहीं है अब अकेला
 स्वप्न का संगीत क्म्गन कंगन की तरह खनका 
सांझ रंगारंग है ये
 
मुस्कुराता अंग है ये
 
बिन बुलाए आ गया है मेहमान यौवन का
 
प्यार कहता है डगर में
 
बह नहीं जाना लहर में
 
रूप कहता झूम जा, त्यौहार है तन का
 
घट छलककर डोलता है
 
प्यार के पट खोलता है
 
टूटकर बन जाए निर्भर प्राण पाहन का
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