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|रचनाकार = रघुवीर सहाय |संग्रह =हँसो हँसो जल्दी हँसो / रघुवीर सहाय
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<poem>
हँसो तुम पर निगाह रखी जा रही जा रही है
और तुम मारे जाओगे
ऐसे हँसो कि बहुत खुश न मालूम हो
वरना शक होगा कि यह शख्स शख़्स शर्म में शामिल नहीं
और मारे जाओगे
जैसे सब हँसते हैं बोलने के बजाए
जितनी देर ऊंचा ऊँचा गोल गुंबद गूंजता गूँजता रहे, उतनी देर
तुम बोल सकते हो अपने से
अंत में हँसे तो तुम पर सब हँसेंगे और तुम बच जाओगे
जो कि अनिवार्य हों
जैसे ग़रीब पर किसी ताक़तवर की मार
उस ग़रीब के सिवाय
और वह भी अकसर हँसता है
हँसो हँसो जल्दी हँसो
इसके पहले कि वह चले जाएंजाएँ
उनसे हाथ मिलाते हुए
नज़रें नीची किए
उसको याद दिलाते हुए हँसो
कि तुम कल भी हँसे थे !
</poem>