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जी करता है जंगल के इक गोशे <ref>टुकड़े</ref>को आबाद करें
धूनी रमाएँ,चिलम भरें और भोलेनाथ को याद करें
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दास्ताँ तेरी किसी को न सुनाई हमने
आग ख़ुद अपने नशेमन में लगाई हमने
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आती हैं याद तेरी तल्लवुन मिज़ाजियाँ<ref>बात से फिर जाना</ref>
करता है बात जब भी कोई ऐतबार की
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हर तरफ़ हैं ख़ैमाज़न <ref>डेरा डाले हुए</ref> पत्थरों के सौदागर
दिल का आइना ले कर जाओगे किधर यारो
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लग़ज़िशें <ref>डगमगाहटें</ref> साथ कहाँ तक देंगी
हम भी इक रोज़ सँभल जायेंगे
परचों में आजकल की सियासत पे थे सवाल
हम हो सके न पास किओसी किसी इम्तिहान में
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ऐ मसीहा नफ़स <ref> जो हर बीमारी का इलाज कर सके, माशूक़ </ref> ! तिरे सदक़े
हो सके तो मुझे भी अच्छा कर
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वो लम्हे कि जो हमने इक साथ गुज़ारे हैं
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वो तुमतुराक़<ref>धूमधाम्</ref> , वो सजधज, वो शान है कि जो थी
हमारे दिल की वही आनबान है कि जो थी
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अपनी तकमील <ref>पूर्ति</ref> के लिए ऐ ‘शौक़’
रेज़ा—रेज़ा बिखरना पड़ता है
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क्या शौख़ 'शौक़' तमन्ना हो मुझे ख़ुल्दे —बरीं <ref>स्वर्ग</ref> की
शिमला ही मिरा मेरे लिए ख़ुल्दे बरीं है.
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