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|रचनाकार=फ़िराक़ गोरखपुरी
|संग्रह=गुले-नग़मा / फ़िराक़ गोरखपुरी
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उजाड़ बन में कुछ आसार से चमन के मिले
दिले-ख़राब से वो अपकी याद बन के मिले।
हर-इक मशामाम<ref>श्रवण शक्ति<ref> में आलम है युसुफ़िस्ताँ का
परखने वाले तो कुछ बू-ए-पैरहन के मिले
 
थी एक बू-ए-परेशाँ भी दिल के सहरा में
निशाने - पा भी किसी आहू-ए-ख़ुतन<ref>ख़ुतन की हिरन<ref> के मिले।
 
अजीब राज है तनहाई-ए-दिले-शाएर
कि खिलवतों<ref>एकान्त<ref> में भी आसार अन्जुमन के मिले।
 
 
 
 
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