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कि खिलवतों<ref>एकान्त</ref> में भी आसार अन्जुमन के मिले।
वो हुस्नो-इश्क़ जो सुब्हे-अज़ल से बिछड़े थे
मिले हैं वदी-ए-ग़ुर्बत मएं फिर वतन के मिले।
कुछ अहले-बज़्मे-सुख़न समझे, कुछ नहीं समझे
बशक्ले-शोहरते-मुबहम, सिले सुख़न के मिले।
था जुर्आ-जुर्आ<ref>घूँट-घूँट</ref> नयी ज़िन्दगी का इक पैग़ाम
जो चन्द जाम किसी बादा-ए-कुहन के मिले।
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