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तख़्ता-पलट के बाद,
 
नेरुदा के बागीचे में एक रात
 
सिपाही नमूदार हुए,
 
पेड़ों से पूछ-ताछ करने के लिए लालटेनें उठाते,
ठोकरें खाकर पत्थरों को कोसते.