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|रचनाकार=सोहनलाल द्विवेदी
}}
चल पड़े जिधर दो डगड़ग, मग में<br>
चल पड़े कोटि पग उसी ओर;<br>
पड़ गई जिधर भी एक दृष्टि<br>
पड़ गड़ गये कोटि दृग उसी ओर,<br><br>
जिसके शिर पर निज धरा हाथ<br>
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