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Kavita Kosh से
अंधेरे सघन वन में
या अगर हैं
परिस्थितियों की तलहटी में
तो वहीं से बादलों के रूप में
ऊपर उठेंगे
हम जहाँ हैं वहीं से
आगे बढे़ंगे
यह हमारी नियति है
चलना पडे़गा
रात में दीपक
दिवस में सूर्य बन जलना पडे़गा
जो लडा़ई पूर्वजों ने छोड़ दी थी
हम लडे़ंगे
हम जहाँ हैं
वहीं से आगे बढे़ंगे
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