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नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अवतार एनगिल |संग्रह=मनखान आएगा /अवतार एनगिल }} <poem>...
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{{KKRachna
|रचनाकार=अवतार एनगिल
|संग्रह=मनखान आएगा /अवतार एनगिल
}}
<poem>मनखान ने 'तापती' से कहा---
हे सूर्यपुत्री! तुम्हारी साड़ी अगले माह सही
इस महीने हंसा के जूते ले देते हैं
औ' बकाया किराया चुका देते हैं
लिहाज़ा,साड़ी का रतानारा तलिस्म तोड़कर
पत्नि ने मुड़े-तुड़े नोट निकाले
और भुक्खड़ पति ने सामने पटक दिये
खिसियाए आदमी ने
तपती तापती से आंख बचाकर
झट से झपट लिए
बेटे हंसा को अंगुली से बांधकर
बाप बाज़ार चला...
रास्ते में कस्बे के मोची ने हाथ उठाया
और अदब से बोला--
बाबू जी राम राम !
राम राम ! राम राम !----कहा मनखान ने
और सोचा मन में
निःसन्देह इसकी निगाह में
बच्चे के टूटे जूते पर रही होगी
चर्मकार आंख जूते पर धरता है
नहीं तो कौन हमें राम-राम करता है
बहरहाल, आईसक्रीम की मांग को स्थगित कर
पिता ने पुत्र को जूते की दुकान तक पहुँचाया
बच्चा भी जैसे चालीस वाट का बल्ब
दुकान की न्योन रोशनियों में चकराया
सस्ते से सस्ता जूता
मनखान को मंहगा लगा
और लगी
वह नन्हें जगमग जूतों की जोड़ी
अपनी जेब से बड़ी.....
दुकानदार का कीमती वक्त गंवाने के गिल्ट से
बचने के लिए
उसने बच्चे के लिए
हवाई चप्पल खरीदी
पर हंसा का पुराना जूता
कूड़े की टोकरी में डालने के बजाय
प्यार से थपथपाया
और पालीथीन के लफ़ाफे में
सहेज लिया
हवाई चप्पल पहनकर
तेज़ लू में चलते हुए भी
'हंसा' को लगा
कि वह मानसरोवरी हंसों के पंखों पर उड़ रहा था
पर मनखान कुढ़ रहा था
जहां से टूटा था
बहीं जुड़ रहा था
पिता-पुत्र दोनों चर्मकार के छप्पर तले पहुंचे
हंसा के फटीचर जूते
मोची के सामने खोलते हुए
मनखान बोले---
'राम-राम,चाचा !'</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=अवतार एनगिल
|संग्रह=मनखान आएगा /अवतार एनगिल
}}
<poem>मनखान ने 'तापती' से कहा---
हे सूर्यपुत्री! तुम्हारी साड़ी अगले माह सही
इस महीने हंसा के जूते ले देते हैं
औ' बकाया किराया चुका देते हैं
लिहाज़ा,साड़ी का रतानारा तलिस्म तोड़कर
पत्नि ने मुड़े-तुड़े नोट निकाले
और भुक्खड़ पति ने सामने पटक दिये
खिसियाए आदमी ने
तपती तापती से आंख बचाकर
झट से झपट लिए
बेटे हंसा को अंगुली से बांधकर
बाप बाज़ार चला...
रास्ते में कस्बे के मोची ने हाथ उठाया
और अदब से बोला--
बाबू जी राम राम !
राम राम ! राम राम !----कहा मनखान ने
और सोचा मन में
निःसन्देह इसकी निगाह में
बच्चे के टूटे जूते पर रही होगी
चर्मकार आंख जूते पर धरता है
नहीं तो कौन हमें राम-राम करता है
बहरहाल, आईसक्रीम की मांग को स्थगित कर
पिता ने पुत्र को जूते की दुकान तक पहुँचाया
बच्चा भी जैसे चालीस वाट का बल्ब
दुकान की न्योन रोशनियों में चकराया
सस्ते से सस्ता जूता
मनखान को मंहगा लगा
और लगी
वह नन्हें जगमग जूतों की जोड़ी
अपनी जेब से बड़ी.....
दुकानदार का कीमती वक्त गंवाने के गिल्ट से
बचने के लिए
उसने बच्चे के लिए
हवाई चप्पल खरीदी
पर हंसा का पुराना जूता
कूड़े की टोकरी में डालने के बजाय
प्यार से थपथपाया
और पालीथीन के लफ़ाफे में
सहेज लिया
हवाई चप्पल पहनकर
तेज़ लू में चलते हुए भी
'हंसा' को लगा
कि वह मानसरोवरी हंसों के पंखों पर उड़ रहा था
पर मनखान कुढ़ रहा था
जहां से टूटा था
बहीं जुड़ रहा था
पिता-पुत्र दोनों चर्मकार के छप्पर तले पहुंचे
हंसा के फटीचर जूते
मोची के सामने खोलते हुए
मनखान बोले---
'राम-राम,चाचा !'</poem>