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समन्दर के नाम / अवतार एनगिल

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<poem>बहुत-बहुत दिन हुए
जब सुबह
तुम्हारे विशाल तट की तपी रेत पर
लेटते समय
भुनकर
छिल गई थी
हमारी देहें

तब
हे सागर
तुम्हीं ने
गरजते
डाँटते
बौछारते
अपनी लहरों के प्रकाश से
हमारे जिस्मों के तांबिया कलशों को
मल-मल धोया था

पर पहुंचते ही तट तक
तुम्हारे इन दो बच्चों ने
एक बार फिर
अपने फालतू खुद को
रेत की
चादर से पोंछा था
और यह तन
यह मन
तुम्हें अर्पित करने के बजाय
लौट गये थे
अपने-अपने घरौंदों में

हे पिता !
आज दूसरी बार
बनकर दुहेले से अकेला
आन पहुंचा हूं
लिए हाथों में
अपनी ही अस्थियों का कलश

आ रहा हूं
इस लौटती लहर संग
बहुत-बहुत दिनों बाद
स्वीकार करो मुझे
हे पिता !
</poem>
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