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झरना / अवतार एनगिल

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<poem>तीन रमणियों संग
नौका-विहार करता वह व्यक्ति
निर्जन घाट पर उतरता है

भुरभुरी रेत पर
अपने पौरुष की लिप्सा मग्न
उस आदमी को लगता है
....नदी पर नाव में भी
वह तीसरी
रमण से बचते हुए
कन्या ही रही है
,,,कि बोझिल कदम उठाती
वह फिर
नदी से बातें करने जा रही है

तभी अचानक
कन्या पलटकर भागती है
और मदन-मस्त व्यक्ति के देखते-देखते
नदी तट से जुड़े
बुदबुद उबलते दलदल में कूदकर
धंसने लगती है
गंधक के भापीले कुहरे में
हो जाती है लुप्त
तब
उसकी आंख से
दो रमणियां
उबलते कीचड़ के कगार खड़ा
वह कायर शख़्स
कन्या के पीछे कूद
उसे बचाने
अथवा स्वयं मरने में असमर्थ
तलाशने लगता है
मैले दर्पण में
उजली परछाईं

फटता है कीचड़
फटता है जल
वह निकलता है तब
एक निर्मल झरना
लेता हिचकियां
बहता निर्बाध
नीलम आंख से
पावन जल
</poem>
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