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नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=माधव कौशिक |संग्रह=सूरज के उगने तक / माधव कौशिक }} <...
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=माधव कौशिक
|संग्रह=सूरज के उगने तक / माधव कौशिक
}}
<poem>हड्डियों में आग के चकमक नहीं।
अब किसी को चीखने का हक नहीं।
कौन रोकेगा सियासी बदचलन,
रास्ते में कोई अवरोधक नहीं।
जल रहा है शहर लेकिन ये कहो,
आजकल हालत विस्फोटक नहीं।
सारी दुनिया जानती है क्या हुआ,
आपको यह खबर अब तक नहीं।
राह थी तो राहबर कोई न था,
अब दिशा है पर दिशा सूचक नहीं।
भूख, बेकारी, जहालत इस कदर,
बालकों के पास भी गल्लक नहीं।
सच कहें सच के सिवा कुछ न कहें,
क्या शहर में एक भी अहमक नहीं।
इस व्यथा पर मैं कथा कैसे लिखूँ,
आपका बिखराव सम्मोहक नहीं।
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=माधव कौशिक
|संग्रह=सूरज के उगने तक / माधव कौशिक
}}
<poem>हड्डियों में आग के चकमक नहीं।
अब किसी को चीखने का हक नहीं।
कौन रोकेगा सियासी बदचलन,
रास्ते में कोई अवरोधक नहीं।
जल रहा है शहर लेकिन ये कहो,
आजकल हालत विस्फोटक नहीं।
सारी दुनिया जानती है क्या हुआ,
आपको यह खबर अब तक नहीं।
राह थी तो राहबर कोई न था,
अब दिशा है पर दिशा सूचक नहीं।
भूख, बेकारी, जहालत इस कदर,
बालकों के पास भी गल्लक नहीं।
सच कहें सच के सिवा कुछ न कहें,
क्या शहर में एक भी अहमक नहीं।
इस व्यथा पर मैं कथा कैसे लिखूँ,
आपका बिखराव सम्मोहक नहीं।
</poem>