भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

भरोसा क्या करे कोई / माधव कौशिक

1,279 bytes added, 04:55, 15 सितम्बर 2009
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=माधव कौशिक |संग्रह=सूरज के उगने तक / माधव कौशिक }} <...
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=माधव कौशिक
|संग्रह=सूरज के उगने तक / माधव कौशिक
}}
<poem>भरोसा क्या करे कोई तिजारत के हवालों का।
न सत्ता का यकें हमको न सता के दलालों का।

दिखाई भी नहीं देता हमें उगता हुआ सूरज,
अँधेरा तल्ख़ है इतना सवालों ही सवालों का।

तुम्हें कल रात सपने में ज़रा हंसते हुए देखा,
बहुत दिनों में नज़र आया मुझे चेहरा उजालों का।

शुरू से अंत तक सब चित्र नंगे, शब्द भी नंगे,
किसी वैश्या से बदतर हो गया हुलिया रिसालों का।

तुम्हारी आँख में आँसू चमकते हैं मगर ऐसे,
कि जैसे धूप में दमके कलश ऊँचे शिवालों का।
</poem>
Mover, Uploader
2,672
edits