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रंग महल / अवतार एनगिल

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<poem>अभी-अभी
चम्बा के द्वारों पर
श्यामल 'सांझ' उतरी है
भीगे धुंधलके में
रंग महल के सिलवटों भरे माथे तले
लगा सिंह मुख----
पेड़ के गोल ठूंठ--सा


मदन की मिट्टी में
अनुभव का बीज़
युगों के जिस्म में
रक्त-बीज बना
गर्भ धारण किय्आ है
धरती ने

हवा की हलकी
बहुत हलकी पदचाप के साथ
कोई अनाम महक
रंग-महल के निकट भटकती है
रक्त-बीजों की आभा
सिल्वटों भरे माथे पर दमकती है।</poem>
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