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नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना भाटिया |संग्रह= }} <poem>आकार नही .. साकार नही.. ब...
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रंजना भाटिया
|संग्रह=
}}
<poem>आकार नही ..
साकार नही..
बस ...
एक आभास ही तो है
और है ..
एक धीमी सी
लबों पर जमी हँसी
जो लफ्जों के पार से
हर सीमा से ..
छू लेती है रोम रोम
और फ़िर ...
चाहता है यह
बवारा मन
मोहक अनुभूति
के कुछ क्षण
जिस में रहे न कुछ शेष
न कुछ खोना
और न ही कुछ पाना
बस यूँ ही ...बहते बहते
कहीं एकाकार हो जाना .../poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=रंजना भाटिया
|संग्रह=
}}
<poem>आकार नही ..
साकार नही..
बस ...
एक आभास ही तो है
और है ..
एक धीमी सी
लबों पर जमी हँसी
जो लफ्जों के पार से
हर सीमा से ..
छू लेती है रोम रोम
और फ़िर ...
चाहता है यह
बवारा मन
मोहक अनुभूति
के कुछ क्षण
जिस में रहे न कुछ शेष
न कुछ खोना
और न ही कुछ पाना
बस यूँ ही ...बहते बहते
कहीं एकाकार हो जाना .../poem>