भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना भाटिया |संग्रह= }} <poem>कहाँ तलाश करे वह पल .. जि...
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रंजना भाटिया
|संग्रह=
}}
<poem>कहाँ तलाश करे वह पल ..
जिस में थे साथ साथ ..
दूर रह कर थे पास हम ..
दिल में बसे हुए एहसास
कहे बिना ,सुना एक दूजे को
हर बात में छिपा था राज ..
खुली पलक में थी ,
सुबह की चमक....
बंद आंखो के सपने थे ख़ास ..
बंद होंठो से चुनते थे ..
साँसों की गुनगुनी आवाजें ,
चाँद की किरणों में सिमटी ..
वो उजली मीठी सी बातें ..
पर न जाने ......
अब कहाँ खो गयीं है
वो सब बेचैनियां
थमे वक्त पर जैसे
खामोशी की मुहर लगी है ..
और अब .....
यदि मिल भी जाओ ..
किसी मोड़ पर ..
तो बीते वक्त की बात मत करना
बहुत मुश्किल से सुलाया है ..
दिल ने अनसुलझे सवालो को ..
मेरी खामोश जुबान
अब कुछ न कह पाएगी
और तुम भी ...
अब मेरे ...
हमख्याल न हो पाओगे
टूट जाओगे मेरे जवाबों से
और अपने सवालों को ..
मैं भी अव बहला न पाऊंगी </poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=रंजना भाटिया
|संग्रह=
}}
<poem>कहाँ तलाश करे वह पल ..
जिस में थे साथ साथ ..
दूर रह कर थे पास हम ..
दिल में बसे हुए एहसास
कहे बिना ,सुना एक दूजे को
हर बात में छिपा था राज ..
खुली पलक में थी ,
सुबह की चमक....
बंद आंखो के सपने थे ख़ास ..
बंद होंठो से चुनते थे ..
साँसों की गुनगुनी आवाजें ,
चाँद की किरणों में सिमटी ..
वो उजली मीठी सी बातें ..
पर न जाने ......
अब कहाँ खो गयीं है
वो सब बेचैनियां
थमे वक्त पर जैसे
खामोशी की मुहर लगी है ..
और अब .....
यदि मिल भी जाओ ..
किसी मोड़ पर ..
तो बीते वक्त की बात मत करना
बहुत मुश्किल से सुलाया है ..
दिल ने अनसुलझे सवालो को ..
मेरी खामोश जुबान
अब कुछ न कह पाएगी
और तुम भी ...
अब मेरे ...
हमख्याल न हो पाओगे
टूट जाओगे मेरे जवाबों से
और अपने सवालों को ..
मैं भी अव बहला न पाऊंगी </poem>