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{{KKRachna
|रचनाकार=रंजना भाटिया
|संग्रह=
}}
<poem>बच्चों सा मन और बच्चों सी इबारत
लिखना सरल नहीं होता
कितनी आसानी से वह
लिखते हैं और .......
फ़िर उसको मिटा देते हैं
पर बड़े होने पर हम
सही ग़लत के गणित में उलझे
अपनी ही लिखी ....
इबारतों को नही मिटा पाते ..
खरोच सी लगती है वह इबारते
और हम उस से ....
रिस्ते लहू को पौंछ भी नही पाते हैं ....</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=रंजना भाटिया
|संग्रह=
}}
<poem>बच्चों सा मन और बच्चों सी इबारत
लिखना सरल नहीं होता
कितनी आसानी से वह
लिखते हैं और .......
फ़िर उसको मिटा देते हैं
पर बड़े होने पर हम
सही ग़लत के गणित में उलझे
अपनी ही लिखी ....
इबारतों को नही मिटा पाते ..
खरोच सी लगती है वह इबारते
और हम उस से ....
रिस्ते लहू को पौंछ भी नही पाते हैं ....</poem>