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लास्ट सपर / रंजना भाटिया

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{{KKRachna
|रचनाकार=रंजना भाटिया
|संग्रह=
}}
<poem>एक लौ मोमबत्ती की
उन के नाम भी .....
जिन्होंने..
अपने किए विस्फोटों से
अनजाने में ही सही
पर हमको ...
एक होने का मतलब बतलाया

एक लौ मोमबत्ती की..
उन लाशों के नाम....
जिनका आंकडा कहीं दर्ज़ नही हुआ
और न लिया गया उनका नाम
किसी शहादत में....
और ...................
न कहीं उनको मुर्दों में गिना गया

चुपचाप जली यह लाशें
कितनी मासूम थी
क्या जानती थी वह
कि वह ....
अपनी ज़िन्दगी का
मानने आई थी आखिरी जश्न
और उन्होंने खाया था
अपनी ज़िन्दगी का "लास्ट सपर"

पर ......
आज सिर्फ़ उनके नाम क़ैद हैं
उन आंकडों में कहीं दबे हुए
जो दर्शाए गए नहीं कहीं भी
सिर्फ़ इसी डर से....
कि कहीं जो आग सुलगी है
वह जल कर उनकी कुर्सियां
उनसे छीन न सके
और वह लाशें भी कहीं
उन इंसानों की तरह
मांगने न लगे इन्साफ
जो अभी अभी हुए
बम ,गोली के धमाकों से
जाग उठी है ....!!!!</poem>
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