भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=फ़िराक़ गोरखपुरी |संग्रह=गुले-नग़मा / फ़िराक़ ग...
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=फ़िराक़ गोरखपुरी
|संग्रह=गुले-नग़मा / फ़िराक़ गोरखपुरी
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
निगाहों में वो हल कई मसायले-हयात<ref>जीवन की समस्याओं</ref> के
वो गेसूओं के ख़म कई माआमिलात के ।
हमारी उँगलियों में धड़कने हैं साज़े - दह्र की
हम अह्ले-राज़ पारखी हैं, नब्ज़े कायनात के।
है आबो-गिल में शोलाज़न बस एक साज़े-सरमदी
हिजाबे-दह्र परदे हैं, तरन्नुमे-हयात के।
ये क़शक़ा-ए-सुर्ख़-सुर्ख़, रूकशे-चिराग़े-तूर है
जबीने कुफ़्र से अयाँ रमूज़ इलाहियात के।
असातज़ा के बस जो थे, सब मुझे सिखा दिये
सुकूते-सरमदी ने वो निकात शेरयात के।
नज़र जो साफ़ आ रहे हैं ख़ानाहा-ए-बेख़तर
वही बिसाते - गंजफ़ा में हैं मुक़ाम मात के।
हज़ारहा इशारे पायेंगे, तलाश शर्त है
क़दींम फ़िक्रयात में, जदीद फ़िक्रयात के।
निजात के लिये न इन्तेज़ारे-मर्गो-हश्र कर
कि कै़दो-बन्दे जिन्दगी में राज़ हैं निजात के।
ये सफ़-बसफ़ मनाज़िरे-ज़माना देख गौर से
है आईना-दर-आईना सबक़ तहय्युरात के।
जमाहियाँ सी ले रहे हैं आसमान पर नुज़ूम<ref>सितारे</ref>
सुना रही है ज़िन्दगी, फ़साने कटती रात के।
कहाँ से हाथ लाइये इन्हे उठाने के लिये
हिजाब - दर - हिजाब जल्वे हैं तअय्युरात के।
{{KKMeaning}}
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=फ़िराक़ गोरखपुरी
|संग्रह=गुले-नग़मा / फ़िराक़ गोरखपुरी
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
निगाहों में वो हल कई मसायले-हयात<ref>जीवन की समस्याओं</ref> के
वो गेसूओं के ख़म कई माआमिलात के ।
हमारी उँगलियों में धड़कने हैं साज़े - दह्र की
हम अह्ले-राज़ पारखी हैं, नब्ज़े कायनात के।
है आबो-गिल में शोलाज़न बस एक साज़े-सरमदी
हिजाबे-दह्र परदे हैं, तरन्नुमे-हयात के।
ये क़शक़ा-ए-सुर्ख़-सुर्ख़, रूकशे-चिराग़े-तूर है
जबीने कुफ़्र से अयाँ रमूज़ इलाहियात के।
असातज़ा के बस जो थे, सब मुझे सिखा दिये
सुकूते-सरमदी ने वो निकात शेरयात के।
नज़र जो साफ़ आ रहे हैं ख़ानाहा-ए-बेख़तर
वही बिसाते - गंजफ़ा में हैं मुक़ाम मात के।
हज़ारहा इशारे पायेंगे, तलाश शर्त है
क़दींम फ़िक्रयात में, जदीद फ़िक्रयात के।
निजात के लिये न इन्तेज़ारे-मर्गो-हश्र कर
कि कै़दो-बन्दे जिन्दगी में राज़ हैं निजात के।
ये सफ़-बसफ़ मनाज़िरे-ज़माना देख गौर से
है आईना-दर-आईना सबक़ तहय्युरात के।
जमाहियाँ सी ले रहे हैं आसमान पर नुज़ूम<ref>सितारे</ref>
सुना रही है ज़िन्दगी, फ़साने कटती रात के।
कहाँ से हाथ लाइये इन्हे उठाने के लिये
हिजाब - दर - हिजाब जल्वे हैं तअय्युरात के।
{{KKMeaning}}
</poem>