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नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=आरज़ू लखनवी }} <poem> जो कोई हद हो मुअ़य्यन तो शौक़, श...
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{{KKRachna
|रचनाकार=आरज़ू लखनवी
}}
<poem>
जो कोई हद हो मुअ़य्यन तो शौक़, शौक़ नहीं।
वो कमयाब है जो कमयाब हो न सका॥
बुरी सरिश्त न बदली जगह बदलने से।
चमन में आके भी काँटा गुलाब हो न सका॥
... .... ...
उदू न भी मगर अन्धी ज़रूर थी बिजली।
कि देखे फूल न पत्ते न आशियाँ देखा॥
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=आरज़ू लखनवी
}}
<poem>
जो कोई हद हो मुअ़य्यन तो शौक़, शौक़ नहीं।
वो कमयाब है जो कमयाब हो न सका॥
बुरी सरिश्त न बदली जगह बदलने से।
चमन में आके भी काँटा गुलाब हो न सका॥
... .... ...
उदू न भी मगर अन्धी ज़रूर थी बिजली।
कि देखे फूल न पत्ते न आशियाँ देखा॥
</poem>