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|रचनाकार=आरज़ू लखनवी
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खुदारा ! न दो बदगुमानी का मौक़ा।
कहलवा के औरों से पैग़ाम अपना॥

हविसकार आशिक भी ऐसा है जैसे--
वह बन्दा कि रख ले ख़ुदा नाम अपना॥

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