भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
जग में अँधियाला अँधियारा छाया था,
मैं ज्वाला लेकर आया था
मन जीवन पर पछताएगा,
मरना ही होगा मुझको पर, जब मरना था तब मर न सका!
मैं जीवन में कुछ न कर सका!