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Kavita Kosh से
काले, कड़े, बड़े, बिखरे-से,
बेखबरी के हैं संदेसे।
भौंहों में कुछ टेढ़ापन है,
दुनिया को है एक चुतौतीचुनौती,
कभी नहीं झुकने का प्राण है।
आँख-मिचौनी छिड़ी परस्पर,
बेचैनी में, बेसबरी बेसब्री में
लुके-छिपे हैं अपने सुंदर
नयनों के दो द्वार खुले हैं,
समय दे गसा गया ऐसी दीक्षा,
नहीं किसी के लिए प्रतीक्षा।