भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
साथी, सो न, कर कुछ बात!
बोलते उडुगण परस्परपरस्पर,
तरु दलों में मंद 'मरमर',
बात करतीं सरि-लहरियाँ कूल से जल स्नातस्नात!
साथी, सो न, कर कुछ बात!
बात करते सो गया तू,
रह गया मैं और आधी बात, आधी रात!
साथी, सो न, कर कुछ बात!