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::गा रहा अशान्त
प्रेम आत्म-विस्मृत पर लक्ष्य-च्युत शिकारी ।
 
::प्रेम वह प्रसन्न
::खेत में निरन्न
""::दुर्भिक्षावसन्न
सृजक कृषक खड़ा दीन अन्नाधिकारी ।
</poem>
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