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|रचनाकार=बशीर बद्र
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इन आंखों से दिन रात बरसात होगी
अगर जिंदगी ज़िंदगी सर्फ़-ए-जज़्बात होगी
मुसाफिर मुसाफ़िर हो तुम भी, मुसाफिर मुसाफ़िर हैं हम भी
किसी मोड़ पर फिर मुलाक़ात होगी
न बादल घिरेंगे न बरसात होगी
चिरागों चराग़ों को आंखों आँखों में महफूज़ रखना
बड़ी दूर तक रात ही रात होगी
अज़ल-ता-अब्द तक सफर सफ़र ही सफर सफ़र है
कहीं सुबह होगी कहीं रात होगी
</poem>
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